⭐एक नए सर्वे के मुताबिक कई तरह की बीमारियों में डॉक्टर आपको एंटिबायॉटिक्स देते है लेकिन उसका असर ना के बराबर होता है।
⭐इसकी एक वजह चिकन भी हो सकती है। इस सर्वे के मुताबिक चिकन खानों वालों में बीमारी से लड़ने की ताकत में कमजोरी आ रही है।
⭐दिल्ली-एनसीआर में हुए एक सर्वे के मुताबिक चूजों को एंटिबायॉटिक खिलाए जाते है ताकि उनका वजन ज्यादा हो और वह जल्दी बड़े हो।
⭐ऐसे में चिकन खाने वाले के लिए एंटिबॉयटिक्स दवाएं बेअसर हो सकती है क्योंकि सैंपल के दौरान यह पाया गया कि 40 फीसदी एंटिबॉयटिक्स तो चूजों के शरीर में ही मौजूद है। इस हालात में यह दवाएं इंसानी शरीर पर अनुकूल प्रभाव नहीं दिखा पाती है लिहाजा बीमारी से लड़ने की ताकत में कमी आती है।
⭐सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) ने इस सर्वे के लिए दिल्ली और एनसीआर के शहरों से चिकन के 70 सैंपल लिए।
⭐इनमें से 40 फीसदी में एंटिबायॉटिक्स पाया गया। 17 फीसदी सैंपल ऐसे थे जिनमें एक से ज्यादा तरह के एंटिबायॉटिक्स मिले। सीएसई ने कहा है कि इंसानों के लिए इस जानलेवा समस्या के समाधान के लिए सरकार को जरूरी कदम उठाने होगे।
⭐रिपोर्ट में कहा गया है कि पोल्ट्री फॉर्म में सिप्रोफ्लोक्सेक्सिन जैसे एंटिबायॉटिक का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।
⭐ ऐसे चिकन खाकर लोगों में बीमारी से मुक्ति के लिए लिया गया एंटिबायॉटिक्स का असर काफी कम हो जाता है। ऐसा होने से लोगों पर एंटिबायॉटिक दवाएं असर नहीं करेंगी और बीमारी जानलेवा भी हो सकती है।
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